व्यंग्य: वैलेंटाइन्स डे मुर्दाबाद, राजेंद्र शर्मा

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भगवा भाई वैलेंटाइन्स डे का विरोध गलत नहीं करते थे. मोहब्बत के चक्कर में अक्सर धोखा जो हो जाता है. देखा नहीं, मोदी जी के साथ क्या हुआॽ ट्रम्प का वैलेंटाइन्स डे हैप्पी करने के लिए गुलाब लेकर गए थे.

पर बदले मेें मिला क्या‚ धोखाॽ ट्रंप ने गले लगाकर नये तटकरों का खंजर पीठ मेें घोंप दिया और करा लो हैप्पी वैलेंटाइन्स डे. संस्कारी तो पहले ही कहते थे‚ पश्चिमी संस्कृति के पीछे भागेंगे, तो हमें धोखा ही मिलेगा.

कहां हमारी महान ‘वसुधैव कुटुंबकम’ वाली संस्कृति और कहां ट्रंप साहब की पश्चिमी संस्कृति; गले भी मिले, तो मामला केर–बेर के संग वाला हो गया–वो हालें रस आपने‚ उनके फाटत अंग.

पश्चिम की संस्कृति ठहरी भौतिकवादी. मोदी जी के गुलाब की भावना ही नहीं समझी‚ उसकी कद्र ही नहीं की. अगले ने गुलाब लिया और एक तरफ रख दिया और खुद मुंह फाड़कर पूछ लिया–इंडिया से मेरे लिए और क्या लाए होॽ

वैलेंटाइन जब ऐसे रंग दिखाने लगा‚ तो बेचारे मोदी जी क्या करतेॽ लगे लल्लो–चप्पो करने. हमारी मोहब्बत सच्ची है और सच्ची मोहब्बत में तो हम हिन्दुस्तानी जान तक हाजिर कर देते हैं.

तुम तो कुछ भी कह दो‚ कुछ भी मांग लो‚ समझो तुम्हारा हो गया. ट्रंप ठहरा सौदागर‚ कहने लगा – मुझसे जो करते जो प्यार‚ हमारे लड़ाकू जहाज खरीदने से कैसे करोगे इंकारॽ

हमारे जहाज खरीदो, हम से तेल खरीदो, हमसे टेक्नोलॉजी खरीदो, हमसे ये खरीदो‚ हमसे वो खरीदो. ट्रंप का असली वैलेंटाइन कारोबार निकला‚ सो पट्ठे ने वैलेंटाइन डे को अमेरिकी माल का बिक्री दिवस बना दिया.

इतने पर भी संतोष नहीं हुआ तो‚ मस्क को आगे कर दिया और मोेदी जी जब देश लौटकर आए, तो यहां लोग पूछने लगे कि अमेरिका से क्या लाएॽ और कुछ नहीं तो कम से कम इसका वादा तो लाए ही होगे कि डीयर फेंड ट्रंप‚

अब हिन्दुस्तानियों को जबर्दस्ती वापस नहीं भेजेगा और वापस भेजेगा भी तो कम से कम हथकड़ी–बेड़ियां डालकर‚ फौजी जहाज से वापस नहीं भेजेगा.

मोदी जी से मुंह खोलकर कुछ मांगा ही नहीं गया; प्रवासी भारतीयों के साथ इंसानों वाले सलूक की छोड़ो‚ अडानी के लिए परदेसी कानून के शिकंजे से छूट भी नहीं, सो सब एक बार फिर जोर से बोलो––वैलेंटाइन्स डे मुर्दाबाद!

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