आरएसएस-भाजपा और उनसे जुड़े संगठन हर मौके का उपयोग अल्पसंख्यकों के दानवीकरण के लिए करते आए हैं. हालाँकि नफरत फैलाने वाले भाषण देना अपराध है, सजा का प्रावधान भी है,
मगर अधिकांश मामलों में दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही न होने की वजह से पिछले एक दशक से एक सांप्रदायिक पार्टी के सत्ता में होने के कारण नफरती बातें खूब कही जा रही हैं.
इससे धार्मिक अल्पसंख्यकों के बारे में आम लोगों में नकारात्मकता का भाव जड़ पकड़ रहा है. व्हाट्सएप समूहों में जिस तरह की बातें होती हैं, आम मानसिकता जैसा बनती जा रही है,
ऐसा लगता है कि अल्पसंख्यकों से नफरत करना एकदम सामान्य बात है. इसकी जड़ में है नफरत फैलाने वाला वह तंत्र, जिसके चलते नकारात्मक सामाजिक धारणाएं विकसित होती हैं,
बंधुत्व व सामाजिक सद्भाव की अवधारणाए भारतीय संविधान के मूलभूत आधार हैं, को धक्का पहुंचता है. कई नए मसले उठाए जा रहे हैं, बल्कि अब बात सिर्फ मसले उठाने तक सीमित नहीं रह गई है.
अब तो सीधे कार्यवाही का आह्वान किया जा रहा है, जो बातें कही जा रही हैं, वे गलत धारणाओं पर आधारित हैं और सामाजिक विभाजन को और गहरा करती हैं.
“हम दो, वो पांच, उनके पच्चीस” और “राहत शिविर बच्चे पैदा करने की फैक्ट्रियां हैं” जैसे नारों और वक्तव्यों में इस तरह की धारणाएं जोड़ दी गईं हैं-
जैसे मुग़ल बादशाह बाहरी थे, उन्होंने हिन्दुओं के साथ अन्याय किया था, मंदिर तोड़े थे और तलवार की दम पर इस्लाम फैलाया था.
अब यह भी कहा जा रहा है कि मुसलमानों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है कि वे हमारी गौमाता के हत्यारे हैं, लव जिहाद के ज़रिये हमारी लड़कियों और महिलाओं को अपने जाल में फंसा रहे हैं.
अब तो जिहाद की पूरी सीरीज बन गई है जिसमें लैंड जिहाद और वोट जिहाद भी शामिल हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान मोदी ने नफरत फैलाने वाले भाषण देने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी.
ह्यूमन राइट्स वाच के अनुसार, चुनाव के दौरान मोदी ने नफरत फैलाने वाले 110 भाषण दिए. रिपोर्ट कहती है, “मोदी ने अपने भाषणों में इस्लामोफोबिक (इस्लाम के प्रति डर पैदा करने वाली) बातें कही.
इसका एक उद्देश्य अपने राजनैतिक विपक्ष पर हमला बोलना था जिसके बारे में मोदी ने कहा कि वह मुसलमानों के अधिकारों को बढ़ावा देता है.
दूसरा उद्देश्य दुष्प्रचार के द्वारा बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय में मुसलमानों के प्रति डर का भाव पैदा करना था. मोदी के भाषणों का एक और नमूना भी उतना ही डरावना है.
मुसलमानों को आरक्षण देने के प्रस्ताव को कांग्रेस द्वारा मुसलमानों का तुष्टीकरण बताते हुआ मोदी ने कहा: “यह भारत के इस्लामीकरण और उसके टुकड़े-टुकड़े करने के घृणित प्रयासों का हिस्सा है.
जब यूपीए सरकार सत्ता में आई, तब भी उसने ऐसे ही प्रयास किये थे. चाहे जस्टिस वर्मा समिति की रिपोर्ट हो या सच्चर समिति की-ये सब पिछड़ा वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण को लूटने के कांग्रेस के प्रयास थे.”
(To Be Continued>>>)


