बाबा गम्भीरनाथ ऑडिटोरियम में आयोजित ऐतिहासिक मत्स्यपालक मेला में निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कैबिनेट मंत्री डॉ. संजय कुमार निषाद ने मछुआ समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि
“समाज अब सिर्फ़ गिनती में नहीं, नीति निर्धारण में अपनी भूमिका दर्ज करेगा. निषाद पार्टी की स्थापना कोई संयोग नहीं, बल्कि सदियों से वंचित मछुआ समाज के संघर्ष की परिणति है.”
उन्होंने कहा कि आज एनडीए की सरकार केंद्र व राज्य दोनों में समाज को सिर्फ़ गरीब नहीं, सम्मानित नागरिक के रूप में देख रही है. “निषाद पार्टी की स्थापना एक आंदोलन थी— उन समुदायों के हक़ के लिए जिन्हें दशकों तक केवल वोट बैंक समझा गया. अब मछुआ समाज को आरक्षण, सुरक्षा और सम्मान तीनों एक साथ मिलने चाहिए.”
सरकार की तारीफ करते हुए बताया कि आज भाजपा की नीतियों से ज़मीन पर बदलाव की रेखा खींची जा चुकी है. उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार मिलकर मछुआ समाज के जीवन में वास्तविक बदलाव ला रही हैं.
जैसे •प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना: नाव, जाल, कोल्ड स्टोरेज, और मत्स्य परिवहन के लिए आर्थिक सहायता •मुख्यमंत्री मत्स्य योजना: बीज, आहार, उपकरणों के लिए 40–60% तक सब्सिडी
•जीवित मत्स्य परिवहन अनुदान योजना: ताकि ताज़ी मछली बाज़ार में समय पर पहुंचे और लाभ मिले •ब्याज मुक्त ऋण योजना: जिससे मछुआरे अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकें
•दुर्घटना बीमा योजना: मृत्यु या विकलांगता की स्थिति में ₹5 लाख तक की आर्थिक सहायता •किसान क्रेडिट कार्ड और निषाद राज बोट योजना जैसी योजनाएं समाज के आर्थिक उत्थान की रीढ़ बन रही हैं.
जातीय जनगणना और अनुसूचित जाति का संवैधानिक अधिकार:
डॉ. निषाद ने कहा, “जातीय जनगणना सिर्फ़ आंकड़ों की बात नहीं, यह हक़ और प्रतिनिधित्व की बात है. जब तक मछुआ समाज की वास्तविक जनसंख्या की गणना नहीं होगी, तब तक हमें योजनाओं में हमारा हक़ नहीं मिलेगा.
मछुआ समाज की सभी उपजातियों को अनुसूचित जाति की सूची में परिभाषित किया जाना अत्यंत आवश्यक है, ताकि उन्हें शिक्षा, नौकरी और विकास के अवसर मिल सके.
साथ ही उन्होंने संविधान में सूचीबद्ध अनुसूचित जाति मझवार, तुरैहा, तारमाली पासी की सभी 17 मछुआ उपजातियों के संबंध में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक तथ्यों का उल्लेख किया है.
•1961 की जनगणना मैन्युअल (उत्तर प्रदेश) और हालिया उत्तराखंड में शिल्पकार जाति नहीं जातियों का समूह है के शासनादेश के अनुसार ये जातियाँ अनुसूचित जाति के योग्य हैं.
•उत्तर प्रदेश में भी ‘जातियों का समूह’ मानते हुए सभी 17 मछुआ उपजातियों को SC प्रमाण पत्र जारी किया जाना चाहिए
•31 दिसंबर 2016 की राज्यपाल अधिसूचना के अनुसार, इन उपजातियों को OBC से हटाकर SC श्रेणी में जोड़ा जाना चाहिए
•मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ मॉडल की तर्ज पर अनुसूचित जाति कोटा में वृद्धि होनी चाहिए — 27% में से 9% हटाकर 23% SC को दिया जाए.
विपक्षी राजनीतिक दलों पर हमलावर होते हुए बताया कि कुछ अधिकारी और सपा-बसपा के एजेंट, मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान पहुँचा रहे हैं. डॉ. निषाद ने कड़े शब्दों में कहा कि प्रदेश में कुछ अधिकारी और समाजवादी एजेंडे पर काम करने वाले नेता
मछुआ समुदाय के संवैधानिक अधिकारों की उपेक्षा कर रहे हैं और मुख्यमंत्री की “विकास पुरुष” छवि को धूमिल करना चाहते हैं. “ये वे लोग हैं जो न तो मछुआ समाज के आरक्षण से जुड़े संवैधानिक तथ्यों की परवाह करते हैं, न ही इस समाज की शिक्षा, नौकरी, और बहन-बेटियों की सुरक्षा की”
योगी सरकार की संवेदनशीलता और मछुआ समाज का संकल्प:
डॉ. निषाद ने याद दिलाया कि कैसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं 7 जून, 2015 के रेल आंदोलन के समय मछुआ समाज के आरक्षण के मुद्दे को गंभीरता से लिया था और सदन में कई बार इस पर जोरदार तरीके से आवाज़ उठाई.
“यह वही समाज है जिसने भगवान राम को गंगा पार उतारा था, मुगलों और अंग्रेजों से लड़ा था. अब इसे विकास की मुख्यधारा में लाना केवल सरकार का दायित्व नहीं, नैतिक कर्तव्य है.”


