दीपोत्सव में बुलडोज़र!: राजेंद्र शर्मा (व्यंग्य-समागम)

रात के तीसरे पहर में, अचानक आदित्यनाथ की आंख खुल गयी. बेशक, नींद भी उन्हें भगवा वेश में ही अच्छी आती थी, लेकिन नींद कहां कोई वेश देखती है. सो अच्छे खासे योगी के आसन से खिसक कर, साधारण मनुष्यों की योनि में आ पड़े थे, ऊपर से बीच रात में नींद खुलने की दुर्घटना….

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