नफरती भाषणों और अल्पसंख्यकों के दानवीकरण का तेजी से बढ़ रहा है ग्राफ: राम पुनियानी (PART-2)

गोरखपुर हलचल

हाल में झारखण्ड और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में नफरत फैलाने वाले भाषणों ने सभी सीमाएं पार कर लिया है.  भाजपा के हेमंत बिस्वा सरमा के प्रचार का प्रमुख मुद्दा था राज्य में कथित तौर पर मुस्लिम घुसपैठियों का प्रवेश.

भाजपा द्वारा जारी एक निहायत ही घिनौने विज्ञापन में दिखाया गया था कि एक बड़ा मुस्लिम परिवार, एक हिन्दू घर पर हल्ला बोल पर उस पर कब्ज़ा जमा रहा है.

हम सब जानते हैं कि झारखण्ड की कोई अंतर्राष्ट्रीय सीमा नहीं है. फिर आखिर वे मुसलमान कौन हैं, जो हिन्दू घर पर कब्ज़ा कर रहे हैं?

अलबत्ता एक नयी चीज़ जो इस बार हुई, वह यह थी कि चुनाव आयोग ने उस विज्ञापन को हटाने का आदेश जारी किया. मगर यह वीडियो उसके स्त्रोत (जहाँ से उसे हटा दिया गया) के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर तो हो ही सकता है.

एक अन्य भड़काऊ प्रचार यह था कि मुसलमान, आदिवासी लड़कियों से शादी कर आदिवासियों की ज़मीनों पर काबिज हो रहे हैं. इस आरोप को साबित करने के लिए कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं थे.

मगर इससे क्या? लोगों को बांटने का उद्देश्य तो पूरा हो रहा था. नारा यह दिया गया कि मुस्लिम घुसपैठिये, आदिवासियों से उनकी रोटी, बेटी और माटी छीन रहे हैं और यह वक्तव्य हमारे प्रधानमंत्री का था!

इन चुनावों का मुख्य नारा योगी आदित्यनाथ की भाजपा को भेंट थी. नारा था “बटेंगे तो कटेंगे” संदेश यह था कि हिन्दुओं को एक रहना चाहिए.

उनकी बात का समर्थन करने हुए भाजपा के पितृ संगठन आरएसएस के दत्तात्रेय होसबले ने कहा, “महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हिन्दू एक रहेंगे, तो यह सबके लिए अच्छा होगा. हिन्दू एकता स्थापित करने की संघ ने शपथ ली है.”

आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ के नारे को थोडा संशोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने “एक हैं तो सेफ हैं” का नारा दिया. उनके कहने का मतलब यह था कि हिन्दुओं को अगर अल्पसंख्यकों, जो उनके लिए खतरा हैं, से सुरक्षित रहना है, तो उन्हें एक होना होगा.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने लैंड जिहाद और वोट जिहाद की बात की, और अन्य नारों के अलावा, यह भी कहा कि भारत जोड़ो यात्रा में अर्बन नक्सल और अति-वामपंथी लोग शामिल हुए थे.

इस सबके नतीजे में हुए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मतदान पर जो असर हुआ वह साफ़ दिख रहा है. सामाजिक सोच में बदलाव भी सब देख सकते हैं.

व्हाट्सएप समूहों और हिन्दू घरों के ड्राइंगरूमों में इन दिनों होने वाली चर्चा भी इसकी गवाह है. क्रिस्टोफ़ जैफ़रलॉट एक मेधावी अध्येता हैं, जिन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद के उत्थान का गंभीर और बारीक अध्ययन किया है.

उन्होंने मार्च-अप्रैल 2024 में सीएसडीएस द्वारा किए गए अध्ययन को उदृत किया है. हिन्दुओं से मुसलमानों के बारे में उनकी राय पूछी गई थी.

अध्ययन से सामने आया कि अधिकांश हिन्दू मानते हैं कि मुसलमान उतने विश्वसनीय नहीं होते, जितने कि अन्य लोग होते हैं, उनका तुष्टिकरण हो रहा है, आदि.

इस अध्ययन से पता चलता है कि हमारा समाज, मुसलमानों के बारे में नकारात्मक सोच रखता है. अध्येता शायद हमें यह भी बता सकें कि पिछले कुछ दशकों में यह नकारात्मकता और गहरी, और गंभीर क्यों हुई है.?

मजे की बात मोदी का दावा है कि वे सांप्रदायिक भाषण नहीं देते. चुनाव प्रचार में उनकी मुस्लिम-विरोधी टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर मोदी ने पत्रकारों से कहा,

“जिस दिन मैं (राजनीति में) हिन्दू-मुस्लिम की बातें करने लगूंगा, उस दिन मैं सार्वजनिक जीवन के लिए अयोग्य हो जाऊँगा. मैं हिन्दू-मुस्लिम कभी नहीं करूंगा- यह मेरा संकल्प है” कथनी और करनी में कितना अंतर हो सकता है.?

हिन्दुओं में व्याप्त गलत धारणाओं के कारण ही देश की फिजा में जहर घुल रहा है. इससे मुसलमान अपने मोहल्लों में सिमट रहे हैं और “दूसरे दर्जे के नागरिक” बनने के करीब पहुँच रहे हैं.

इस विभाजन से कैसे निपटा जाए? हमें एक वैकल्पिक नैरेटिव को लोगों के बीच ले जाना होगा. हमें लोगों को हमारे स्वाधीनता संग्राम के मूल्यों और हमारी साझा और बहुलतावादी संस्कृति के बारे में बताना होगा.

हमें उन्हें बताना होगा कि सभी धर्मों के लोगों ने कंधे से कंधा मिलाकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी और उसी लड़ाई के मूल्य हमारे संविधान का हिस्सा हैं.

(लेखक मानवाधिकार आंदोलन से जुड़े हैं। आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *