फूल तो बरसाने दो यारों-व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा

gorakhpur halchal

मोदी विरोधियों तुम और कितना गिरोगे? मोदी का विरोध करते–करते‚ कभी देश का, तो कभी धर्म का विरोध करने लगने की बात पुरानी पड़ गई. अब तो पट्ठे मोदी जी के विरोध के चक्कर में फूलों का विरोध करने तक चले गए हैं.

ऐसे शोर मचा रहे हैं जैसे मोदी जी के रोड शो में फूल बरसाने के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी के परिजनों को बुलावा देकर सरकार ने कोई भारी गुनाह कर दिया हो.

बात हो रही है फूल बरसाने की और भाई लोग शोर मचा रहे हैं‚ सेना के अपमान का. सेना से जुड़े लोगों से फूल बरसवाना‚ सेना का अपमान भला कैसे हो गयाॽ

राजा की सवारी निकलती है‚ तो उसका स्वागत करना प्रजा का धर्म है और फूल बरसा कर स्वागत करना पुरानी भारतीय परंपरा है. सिर्फ पुरानी ही नहीं‚ देवताओं द्वारा भी बाकायदा अनुमोदित परंपरा है.

खुश होकर देवता लोग जब–तब स्वर्ग से क्या बरसाते हैं-फूल. फिर पब्लिक को रोज–रोज राजा जी की सवारी पर फूल बरसाने का मौका थोड़े ही मिलता है और ऑपरेशन सिंदूर नाम भले ही हो‚ पर था तो युद्ध अभियान.

राजा जी युद्ध अभियान में जीत कर आएं‚ तब तो प्रजा का डबल–डबल फूल बरसाना बनता है. इसमें किसी कर्नल सोफिया कुरैशी को आड़े नहीं आना चाहिए, तब तो और भी नहीं, जब उसके नाम में कुरैशी लगा हुआ हो.

आतंकवादियों की बहन मान लिए जाने का खतरा हमेशा सिर पर मंडराता रहता है. रही बात सोफिया कुरैशी के परिवार के एक फौजी परिवार होने की तो‚ फौजी परिवार भी तो प्रजा का ही हिस्सा हैं‚

बल्कि फौजी अभियान के बाद फूल बरसवाने में फौजियों और फौजी परिवारों को तो सबसे आगे रहना चाहिए. खबरिया चैनलों पर‚ युद्ध तो युद्ध, शांति के समय में भी‚ गला फाड़ कर चिल्लाने के लिए जब सेना से जुड़े लोगों को

विशेषज्ञ कह कर बुलाया जाता है‚ तब तो कोई नहीं कहता है कि सेना का अपमान हो गया. फिर सोफिया कुरैशी के परिवार के सौ–दो सौ ग्राम फूल बरसाने से सेना का अपमान कैसे हो जाएगाॽ

वैसे भी कौन-सा किसी को पकड़ कर जबर्दस्ती फूलों की बारिश कराई गई है और यह कौन बोला कि रोडशो में फूल बरसवाना फूलों का अपमान है. फूलों की तो सार्थकता ही राजा जी के मुकुट में सजने में है. सो‚ फूल तो बरसाने दो यारो‚ वह भी टनों के हिसाब से…

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)

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