जहाँ मज़दूर अदृश्य है! आलेख: नंदिता हक्सर (अनुवाद: अंजली देशपांडे)
कई साल पहले, मैं साहित्य उत्सवों के विचार से रोमांचित होती थी और उनमें उत्साही भागीदार हुआ करती थी. मैं अरुंधति रॉय के इस बयान से सहमत नहीं थी कि ये केवल अभिजात वर्गीय उत्सव होते हैं. ऐसे अन्य लेखकों से मिलना, जो खुद उत्पीड़न का मुकाबला कर रहे हों, अनेकानेक देशों और संस्कारों के…


