भारत के सीजेआई बी आर गवई ने क्यों कहा कि मैं दलित जरूर हूं लेकिन अछूत नहीं?

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भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस बी. आर. गवई ने यह बयान सामाजिक भेदभाव और जातिगत पूर्वाग्रहों के संदर्भ में दिया, जो भारतीय समाज में गहरे पैठे हुए हैं.

यह बयान संभवतः उनके व्यक्तिगत अनुभवों और सामाजिक धारणाओं को चुनौती देने के लिए था, जो दलित समुदाय को अक्सर “अछूत” के रूप में चित्रित करती हैं.

इसके पीछे के कारणों को समझने के लिए विचार किया जाना चाहिए. जस्टिस गवई, जो दलित समुदाय से आते हैं और भारत के पहले बौद्ध सीजेआई हैं, ने अपने करियर और जीवन में जातिगत भेदभाव का सामना किया होगा.

उनके इस बयान का संदर्भ शायद यह रहा हो कि उच्च पद पर पहुंचने के बावजूद, दलितों को सामाजिक रूप से अछूत मानने की मानसिकता अभी भी समाज में मौजूद है.

यह बयान उनकी पहचान को गर्व के साथ स्वीकार करने और साथ ही “अछूत” जैसे अपमानजनक लेबल को खारिज करने का प्रयास हो सकता है.

एक घटना में, जस्टिस गवई ने मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान राज्य के शीर्ष अधिकारियों की अनुपस्थिति पर नाराजगी जताई थी. उन्होंने इसे संवैधानिक संस्थाओं के बीच सम्मान की कमी के रूप में देखा.

कुछ लोगों ने इसे उनके दलित होने से जोड़कर देखा, जिसे एक एक्स पोस्ट में भी उल्लेख किया गया, जहां कहा गया कि उच्च पद पर होने के बावजूद दलितों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

जस्टिस गवई ने पहले भी कहा है कि अगर वे दलित न होते, तो शायद सुप्रीम कोर्ट में जज न बन पाते, जो संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण और अवसरों के महत्व को दर्शाता है.

उनका यह कहना कि “मैं दलित जरूर हूं लेकिन अछूत नहीं हूं” समाज को यह संदेश देता है कि दलित पहचान गर्व का विषय है, लेकिन इसे “अछूत” जैसे नकारात्मक और अपमानजनक शब्दों से जोड़ना गलत है.

जस्टिस गवई का यह बयान न केवल उनकी व्यक्तिगत पहचान को दिखाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि दलित समुदाय को आज भी सामाजिक और संस्थागत स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

यह बयान समाज को यह याद दिलाता है कि दलित व्यक्ति, चाहे वे कितने भी बड़े पद पर हों, अपनी पहचान को गर्व के साथ अपनाते हैं, लेकिन उन्हें “अछूत” जैसे पुराने और अपमानजनक लेबल से मुक्त होना चाहिए.

दूसरी तरफ जस्टिस बी. आर. गवई का यह बयान उनके निजी अनुभवों, सामाजिक धारणाओं के खिलाफ एक स्टैंड, और दलित समुदाय के लिए सम्मान और समानता की मांग को दर्शाता है.

यह बयान न केवल उनकी व्यक्तिगत यात्रा को उजागर करता है, बल्कि भारत में जातिगत भेदभाव की जटिल वास्तविकता को भी सामने लाता है.

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