बिजली के निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मचारियों ने बांधी काली पट्टी

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पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के विरोध में बिजली कर्मचारियों, संविदा कर्मियों और अभियंताओं ने आज समस्त जनपदों एवं परियोजना मुख्यालयों पर विरोध सभा की और कार्य के दौरान पूरे दिन काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज किया.

संघर्ष समिति ने कहा है कि बिजली के निजीकरण हेतु टेंडर नोटिस प्रकाशित होने के बाद से ही बिजली कर्मचारियों में लगातार गुस्सा बढ़ रहा है और वे अपना आक्रोश प्रदर्शित करने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं.

काली पट्टी बांधकर विरोध का अभियान 18 जनवरी तक चलेगा। 18 जनवरी को आगे के कार्यक्रम घोषित किए जाएंगे. आज जनपद गोरखपुर के अलावा राजधानी लखनऊ, वाराणसी,

प्रयागराज, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंद शहर, नोएडा, मुरादाबाद, आगरा, अलीगढ़, कानपुर, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, हरदुआगंज, पारीछा, जवाहरपुर, पनकी, ओबरा, पिपरी और अनपरा में बड़ी सभाएं हुईं.

जनपद गोरखपुर में वितरण एवं परीक्षण खण्ड कार्यालय कैंपस बक्शीपुर, 400 केवी ट्रांसमिशन उपकेन्द्र मोतीराम अड्डा, वितरण उपकेंद्र चौरी चौरा, वितरण उपकेन्द्र मोतीराम अड्डा, वितरण उपकेन्द्र शाहपुर एवं मुख्य अभियन्ता कार्यालय प्रांगण मोहद्दीपुर में विरोध सभा आयोजित की गई.

संघर्ष समिति गोरखपुर के पदाधिकारियों पुष्पेन्द्र सिंह, इस्माइल खान, प्रभुनाथ प्रसाद, आशुतोष शाही, संदीप श्रीवास्तव, संगमलाल मौर्य,भानु प्रताप सिंह, राघवेन्द्र साहू, अखिलेश गुप्ता,

राकेश चौरसिया, अहसान अहमद खान, सूरज श्रीवास्तव, राहुल कुमार, दयानंद, ओपी यादव, सुजीत सिंह एवं मुकेश यादव ने कहा कि निजीकरण हेतु जारी किए गए आर एफ पी डॉक्यूमेंट में सारी शर्तें कर्मचारियों के विरोध में लिखी हुई है.

हजारों कर्मचारियों को निजीकरण के बाद निजी घरानों के रहमों करम पर छोड़ दिया जाएगा. कर्मचारियों के सामने एक ही विकल्प होगा या तो वह निजी कंपनी की शर्तों पर काम करें और वह भी तब जब निजी कंपनी उनको अपने यहां काम पर रखें, अन्यथा की स्थिति में वी आर एस लेकर घर चले जाए.

आर एफ पी डॉक्यूमेंट में अर्ली वी आर एस की बात लिखी है अर्थात जल्दी से जल्दी घर जाएं. अर्ली वी आर एस संभवतः इसलिए लिखा गया है कि निजी घरानों को सरकारी कर्मचारियों को अपने यहां रखना ही नहीं है.

एक साल तक बिजली कर्मी निजीकरण के बाद निजी कम्पनी में काम करने हेतु बाध्य होंगे. एक साल में जब निजी कंपनी ढर्रे पर आ जाएगी तब वह सभी सरकारी कर्मचारी घर भेज दिए जाएंगे जो निजी कंपनी को सूट नहीं करते.

निजीकरण का मतलब होगा 50,000 संविदा कर्मचारियों की नौकरी जाना और 26,000 नियमित कर्मचारियों की छटनी, निजीकरण के विरोध को दबाने के लिए संविदा कर्मियों को हटाने, नियमित कर्मचारियों को निलम्बित करने जैसे अवैधानिक कार्य पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन द्वारा किए जा रहे हैं.

यदि प्रबंधन यह समझता है कि बिजली कर्मियों को डराकर निजीकरण थोपा जा सकता है तो यह प्रबंधन की गलत फहमी है. बिजली कर्मी किसी भी कीमत पर निजीकरण स्वीकार नहीं करेंगे और निजीकरण वापस होने तक आन्दोलन जारी रहेगा.

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