निजीकरण के विरोध में चलाए जा रहे अभियान के अंतर्गत संघर्ष समिति ने सप्ताहांत में निजीकरण को लेकर ऊर्जा मंत्री और पावर कार्पोरेशन प्रबंधन से पांच नए सवाल पूछे हैं.
घाटे के नाम पर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किया जा रहा है. पहला प्रश्न है-क्या यह सच है कि वर्ष 2024 – 25 में पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन ने कई निजी घरानों के
उत्पादन दरों से एक भी यूनिट बिजली नहीं खरीदी और इन निजी घरानों को फिक्स कॉस्ट के एवज में 6761 करोड रुपए का भुगतान किया है? यदि यह सच है तो इतने बड़े घाटे की जिम्मेदारी कर्मचारियों पर थोप कर निजीकरण क्यों किया जा रहा है?
सरकारी क्षेत्र में विद्युत उत्पादन निगम से 04 रुपए, 26 पैसे प्रति यूनिट की दर पर बिजली मिलती है और जल विद्युत की बिजली मात्र 01 रुपए प्रति यूनिट की दर पर मिलती है.
सरकार ने बिजली उत्पादन के लिए उत्पादन निगम और जल विद्युत निगम में नए बिजली घरों की स्थापना नहीं किया. इस कारण बिजली की मांग को पूरा करने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर निजी घरानों से काफी महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है.
दूसरा प्रश्न-क्या यह सच है कि के एस के महानंदी से 11 रुपए 58 पैसे प्रति यूनिट, बजाज के छोटे बिजली घरों से 10 रुपए प्रति यूनिट, ललितपुर से 06.50 रुपए प्रति यूनिट, रोजा से 06.05 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदी जा रही है?
यदि यह सच है तो इससे होने वाले हजारों करोड़ रुपए के घाटे की जिम्मेदारी कर्मचारियों पर थोप कर निजीकरण क्यों किया जा रहा है?
ऊर्जा मंत्री कह रहे हैं कि सरकार ने पाया है कि
निजी कंपनियों के पास समस्याओं के समाधान के लिए बेहतर तकनीक और प्रबंध कौशल है. दिल्ली में रिलायंस बीएसईएस की दो कंपनियां बीएसईएस यमुना पावर और बीएसईएस राजधानी पावर पिछले 23 वर्ष से काम कर रही है.
23 वर्ष काम करने के बाद रिलायंस की इन दोनों कंपनियों का बेहतर प्रबंधन कौशल यह है कि इन कंपनियों पर दिल्ली जैसे छोटे राज्य में 25000 करोड रुपए से ज्यादा का दिल्ली की पावर यूटिलिटीज का बकाया हो गया है.
दिल्ली ट्रांस्को का 10,000 करोड रुपए का बकाया है, प्रगति पावर जनरेशन लिमिटेड का 5600 करोड रुपए का बकाया है और इंद्रप्रस्थ पावर जेनरेशन कंपनी का 5,000 करोड रुपए का बकाया है.
तीसरा प्रश्न-दिल्ली की भाजपा सरकार निजी क्षेत्र की विफलता को देखते हुए बीएसईएस, यमुना पावर और बीएसईएस राजधानी पावर का लाइसेंस निरस्त करने की कार्रवाई करने जा रही है?
यदि यह सच है तो भारत की राजधानी में निजी क्षेत्र की इतनी बड़ी विफलता को देखते हुए भी उत्तर प्रदेश के बेहद गरीब 42 जनपदों पर निजीकरण क्यों थोपा जा रहा है?
चौथा प्रश्न– क्या यह सच है कि उत्तर प्रदेश सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय में ग्रेटर नोएडा में नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड का लाइसेंस रद्द कराने का मुकदमा लड़ रही है?
यदि यह सच है तो जो निजीकरण औद्योगिक और वाणिज्य क्षेत्र में विफल हो गया है उसे पूर्वांचल और बुंदेलखंड की बेहद गरीब जनता पर क्यों थोपा जा रहा है?
पांचवा प्रश्न-यदि यह सच है तो निजीकरण के ठीक पहले पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की सबसे सस्ते पावर परचेज एग्रीमेंट आवंटित करना क्या प्रस्तावित निजीकरण के बाद निजी घरानों की परोक्ष रूप से मदद करना नहीं है?


