विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के आह्वान पर लगातार 104वें दिन भी समस्त जिलों और परियोजनाओं पर विरोध प्रदर्शन जारी रही.
संघर्ष समिति ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील करते हुए कहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों और घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति के मामले में निजी क्षेत्र की विफलता को देखते हुए प्रदेश के 42 जनपदों की बिजली के निजीकरण का निर्णय निरस्त करें.
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों पुष्पेन्द्र सिंह, जितेन्द्र कुमार गुप्त, प्रभुनाथ प्रसाद, संगमलाल मौर्य, संदीप श्रीवास्तव, विजय बहादुर सिंह, राकेश चौरसिया, राजकुमार सागर,
धर्मदेव विश्वकर्मा, करुणेश त्रिपाठी एवं रामाश्रय पासवान ने कहा कि अत्यन्त दुर्भाग्य का विषय है कि बिजली कर्मी विगत 104 दिनों से लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
किन्तु प्रबन्धन ने संघर्ष समिति से इस दौरान एक बार भी वार्ता नहीं किया. बता दें कि बिजलीकर्मी भोजन अवकाश में या कार्यालय समय के उपरान्त विरोध सभा कर रहे हैं जिससे कार्य में कोई व्यवधान न आए किन्तु ऐसा लगता है कि प्रबन्धन ने हठवादिता का रवैया अपना रखा है.
‘सुधार और संघर्ष’ ही समिति का हमेशा से मंत्र रहा है जिसका पालन करते हुए विगत दिनों विरोध प्रदर्शन के साथ-साथ महाकुम्भ में श्रेष्ठतम बिजली आपूर्ति का कीर्तिमान बनाया और ओटीएस अभियान की सफलता में पूरी शक्ति से काम किया.
दूसरी ओर पॉवर कॉर्पोरशन प्रबन्धन निजीकरण करने को लेकर इतना उतावला है कि वह अत्यधिक अल्प वेतन पाने वाले संविदा कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी करने पर उतारू हो गया है.
इलेक्ट्रिसिटी रिफॉर्म एक्ट 1999 और ट्रांसफर स्कीम 2000 का उल्लंघन करते हुए नियमित कर्मचारियों के यहां मीटर लगाने के नाम पर अनावश्यक तौर पर औद्योगिक अशान्ति का वातावरण बना रहा है.
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने आगे बताया कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की बिजली व्यवस्था निजी घरानों को सौंपने के पहले सरकार को यह विचार करना चाहिए कि
उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा और आगरा में निजी कंपनी द्वारा किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति में किए जा रहे भेदभाव को देखते हुए प्रदेश के 42 जनपदों में बिजली के निजीकरण का निर्णय कदापि उचित नहीं होगा.
ग्रेटर नोएडा के ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति मात्र 10 से 12 घंटे तक हो रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवधान होने के बाद बिजली आपूर्ति बहाल करने में भी काफी विलंब होता है.
यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि निजी कंपनी मुनाफे के लिए काम करती है और ग्रेटर नोएडा में मुनाफे वाले इंडस्ट्रियल और कमर्शियल उपभोक्ताओं को निजी कंपनी अधिक समय तक बिजली आपूर्ति करती है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में और गरीब घरेलू उपभोक्ताओं के लिए ब्रेकडाउन का समय लंबा होता है.
यह सब विद्युत नियामक आयोग के रिकॉर्ड पर है। उत्तर प्रदेश सरकार ग्रेटर नोएडा में उसका लाइसेंस निरस्त करने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ रही है.
आगरा की बात करें तो आगरा की ए टी एंड सी हानियां केस्को की तुलना में अधिक है और प्रति यूनिट राजस्व वसूली केस्को की तुलना में काफी कम है.
केस्को में ए टी एंड सी हानियां 09.82% है जबकि आगरा में ए टी एंड सी हानियां 09.6 % हैं. आगरा एशिया का सबसे बड़ा चमड़ा उद्योग है और आगरा में उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक पांच सितारा होटल है.
इसके बावजूद यदि निजी क्षेत्र का परफॉर्मेंस सरकारी क्षेत्र की विद्युत वितरण कंपनी की तुलना में कमतर है तो प्रदेश के 42 जनपदों में निजीकरण का इस प्रकार का विफल प्रयोग थोपना सर्वथा अनुचित है.
आज जनपद गोरखपुर सहित राजधानी लखनऊ एवं वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, मिर्जापुर, प्रयागराज, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, हरदुआगंज, पारीछा, ओबरा, पिपरी और अनपरा में विरोध सभा हुई.


