राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखते हुए पूर्वांचल गाँधी डॉ संपूर्णानंद मल्ल ने पूछा है कि ‘संविधान कहां है?’ जिस देश में एक व्यक्ति के पास 12 लाख करोड़ हो, ‘माननीय’, अमीर’ जो चोर लुटेरे हैं.
जिनके बच्चे ‘दून’, ‘डीपीएस’, ऑक्सफोर्ड में पढते हों, उनका इलाज मेदांता/अपोलो में होता हो, ‘ट्रेनों में वातानुकूलित एवं प्रथम श्रेणी यात्राएं करते हों, सड़कों पर बिना टोल टैक्स गाड़ियों से चलते हों.
वहीं दूसरी तरफ 5 kg अनाज में अपना जीवन तलाश करने वाले 80 करोड़ कंगाल एवं 22 करोड़ कुपोषित हो, जिनके पास फूटी कौड़ी न हो, आटा, चावल, दाल, तेल, चीनी, दूध, दही, दवा पर टैक्स लगा हो,
शिक्षा, चिकित्सा, रेल पर टैक्स या ऊँची कीमत पर बेची जा रही है, किसान, मजदूर, गरीब के बच्चे सड़े गले अनाज खाने वाले ‘मिड डे मील’ विद्यालय में पढते हों,
डॉक्टर एवं दवा रहित हॉस्पिटल में इलाज कराते हों, ‘ट्रेनों में फर्श पर एवं बाथरूम में भूसे से भरी बोरी की तरह यात्रा करते हों, वहां कैसा संविधान? कहाँ हैं संविधान?
अंबेडकर ने इसी ‘विषमता’ को समाप्त करने के लिए ‘समता का संविधान’ बनाया था परंतु व्यवस्थापिका’, कार्यपालिका’ के चोर, ‘लुटेरे’ अपराधियों ने 77 वर्षों से इसे लागू नहीं किया.
हमें गांधी का ‘स्वराज’, भगत सिंह का समाजवाद, अंबेडकर का संविधान, कलाम का ‘वैज्ञानिक राष्ट्र’ जो ‘प्रिंबल ऑफ़ कॉन्स्टिट्यूशन’ में है दे दीजिये. आटा, चावल, दाल, तेल, चीनी, दूध, दही, दवा, जीवन/ प्राण है.
इस पर जीएसटी ‘जीवन के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 21 की हत्या है, समाप्त कर दें. निजी गाड़ियों पर टोल टैक्स ‘कहीं आने जाने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 19d’ की हत्या है.
खुली, बेशर्म लूट है, निशुल्क ‘एक समान शिक्षा, ‘चिकित्सा’ रेल यानी गरीब-अमीर सबके लिए ‘एक विद्यालय’, एक चिकित्सालय’ ‘एक रेल’ की व्यवस्था करें, हिंदू-मुस्लिम नफरत जमीन में गाड़ दीजिए. यह सब कुछ संवैधानिक है एवं इसे लागू करना आसान है.
मेरे एवं मेरे परिवार की Z+सुरक्षा की जाए क्योंकि हिंदुत्व के हुड़दंगाई जो सरकार एवं सड़क दोनों जगह हैं, किसी वक्त मेरी हत्या कर देंगे. कुशीनगर में सत्याग्रह (14 नवंबर, 23) के दौरान हमले कर चुके हैं.
हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करने पर गालियां, धमकियां लगातार मिल रही हैं, लगता ही नहीं नफरती ‘बंजारे’, गांधी, भगत सिंह, अंबेडकर की संताने हों. जब तक जीवित हूं हिंदुस्तान में हिंदू मुस्लिम नफरत नहीं चलने दूंगा.
पत्र की यह प्रति सर्वोच्च न्यायालय सहित अध्यक्ष मानवाधिकार आयोग तथा गृह मंत्री भारत सरकार को भी प्रेषित की गई है.


