बाबा साहेब के कुछ बुद्धजीवी अंधभक्त बाबा साहेब को बगैर पढ़े उनकी मूर्ती के गले या पोस्टर पर माला चढ़ा कर जय भीम, जय-जय भीम बोल कर अपना दायित्व पूरा समझ लेते हैं,
तो अधिकतर अंधभक्त जमकर तैयारी करते हैं- मसलन बाबा साहेब की पूजा के लिए कौन सी ली थाली लायी जाए! फूल कहां से और कौन सी खरीदी जाए! माला कौन सी गेंदे की गुलाब की या कोई और फूल की चढ़ाई जाए!
मोमबत्ती कितने वाली जलाई जाए!, देशी घी का वनस्पति घी का दिया, हां वो भी तो जलाना है आदि आदि! ये सारी तैयारियां उनके चंदे पर निर्भर करती हैं.
इन तैयारियों के बाद स्टेज सजाने के बाद माइक पर बडी-बडी बातें! वही ज्ञान भरी बातें भी तो करनी है…. जय भीम, जय भीम, जय-जय-भीम और साथ में नमो बुद्दाय के नारे भी, बड़े जोर शोर से लगेंगे!
ओहो मै तो भूल गया इनका नारे के अलावा मुख्य काम बाबा साहेब की आरती भी तो की जाएगी. बस यही सब ना हो……उसके बदले उनकी एक किताब का पन्ना रोज पढ़ लिया करें,
उनके द्वारा दिए गए विचार की एक लाइन जीवन में उतार ली जाए तो रोज… हां रोज जयंती बड़े ही धूमधाम से मन जाए. 14 अप्रैल ही नहीं प्रतिदिन हम बाबा साहेब को उनके विचारों को फैलाकर
बाबा साहेब को ज्ञान के विचारों में स्वतः याद आएंगे ना कि 14 अप्रैल आना वाला है….? किसी को याद ही न दिलाया जाए. पर यह हो नहीं सकता क्योंकि शासक वर्ग ने पूरी तैयारियों के साथ में हमारे सोचने समझने की छमता पर कब्जा कर दिमाग को कुंद कर दिया है.
हम उनके असली मिशन को मानने के बजाए शासक वर्ग द्वारा दिखाए गए मिशन को ही बाबा साहेब असली मिशन समझकर उसी रास्ते पर चलकर गले पर माला चढ़ा कर (गले पर माला विचारों पर ताला) जय भीम,
जय भीम, जय-जय-भीम और साथ में नमो बुद्दाय के नारे लगाकर मिठाई, नमकीन आपस में वितरित कर और बाबा साहेब के असली मिशन को वंही छोड़कर घर चले जाते हैं.
आखिर में शाम को बहुसंख्यक लोग चंदा उगाही से कार्यक्रम करने के बाद जो पैसा बचता है उसमे से डीजे लगाकर, दारू पीकर मस्त जय भीम, जय भीम, जय-जय-भीम के नारे लगाते हैं और अश्लील गानो पर नाचते हैं और कुछ लोग तो नाचने के लिए लड़कियां तक बुलवाते हैं.
फिर भी जो पैसा बचता है उसे आपस में जो कार्यक्रम की अगुवाई करते हुवे चंदा उगाही करते हैं, वो आपस में बांट लेते हैं. इन्ही अम्बेडकर जयन्ती मनाने वालों में कुछ लोग कार्यक्रम के बाद जो पैसा बचता है
वो उसका समाज में गरीब, असहाय लोगों की मदद करते हैं और कुछ लोग गरीब असहाय के बच्चों के लिए कापी-किताब और पेंसिल वितरित करते हैं.
डा अम्बेडकर ने 22 प्रतिज्ञाएँ देकर मूर्ति पूजा का खंडन करते हुए मूर्ति पूजा का विरोध किया और अब हम सब मिलकर डा अम्बेडकर की बात ना मानते हुवे बाबा साहेब के खिलाफ जाकर
बाबा साहेब को भी भगवान बनाकर उनकी पूजा कर उनको भी एक बुद्ध की तरह विष्णु का अवतार घोषित कर जोरदार तरीके से दुर्गा चालीसा के बजाए भीम पचासा पढ़ रहे हो.
तो फिर क्या अंतर रह गया हिन्दू धर्म के 33 करोड़ के भगवानों में? उन अवतारों में एक शासक वर्ग ने एक नाम और जोड़ दिया और हम शासक वर्ग के चालों को ना समझ कर उन्ही के दिखाए हुवे मिशन पर चल रहें हैं.
इसी तरह से सरकार भी आज डा अम्बेडकर की जयन्ती धूम धाम से मना रही है और भारतीय संविधान की रक्षा के कसमें भी खा रहें हैं और वही सारा काम हम भी कर रहें हैं तो क्या अंतर रह गया शासक वर्ग द्वारा मनाए गए जयंती में और हम आप द्वारा मनाए गए जयन्ती में?
बस एक अंतर नजर आता है कि हम सब भीम आर्मी, चमार द ग्रेट, मै चमार का छोरा आदि जातिवादी स्लोगन के टीशर्ट पहने हुए रहते हैं और जय भीम, जय भीम, जय-जय-भीम के नारे लगाते हैं.
(To Be Continued…)


